फिर क्यूँ सोचे तू ऐसे ?
आज हुआ क्या कल जैसे ?
जब शाम अधूरी चुप बैठी
तब रहे अँधेरा चुप कैसे ?
बात बनी न जब शह से
मात करेगा तू कैसे ?
हाथ खुले हैं आँखे बंद,
ख्वाब बुनेगा क्या भय से?
जब बोल रहा हो जग लय से,
क्या शोर करेगा तू ऐसे?
तू रात अधूरी रहने दे,
सुबह शुरू कर बस जय से!
फिर ना सोचेगा तू ऐसे,
की आज हुआ फिर कल जैसे...
-अनुभव
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