वो अर्थ नहीं जिसमे मै हूँ,
कुछ व्यर्थ नहीं, जब भी मै हूँ,
कुछ अभिलाषा है क्षणभंगुर,
कुछ दृढ़ निश्चय जब भी मै हूँ...
कुछ व्यर्थ नहीं, जब भी मै हूँ,
कुछ अभिलाषा है क्षणभंगुर,
कुछ दृढ़ निश्चय जब भी मै हूँ...
उन्माद नया, भय भी मै हूँ,
सच कह दूं तो लय भी मै हूँ,
पर कुछ सरल से राग न जाने,
कैसे खो देता हर दम मै हूँ...
सच कह दूं तो लय भी मै हूँ,
पर कुछ सरल से राग न जाने,
कैसे खो देता हर दम मै हूँ...
पर फैला लो नभ भी मै हूँ,
सब संभव करता वो मै हूँ,
उन पलकों के पीछे - मृगतृष्णा!
मैंने सोचा था की मै हूँ...
सब संभव करता वो मै हूँ,
उन पलकों के पीछे - मृगतृष्णा!
मैंने सोचा था की मै हूँ...
- अनुभव