ये भी क्या मुमकिन है की तुमसे दाद होगी,
फिर से तुम पूछोगी, फिर नामुराद होगी,
माज़रा क्या है की आँखों में सहर होता ही नहीं,
अभी कुछ वक़्त है शायद कुछ और बाद होगी...
इतने खामोश हो, कोई फरमाइश इजाद होगी,
मेरी ख़ामोशी पर शिकायत की तादाद होगी,
और कह दोगे की इत्तेफाक से हम साथ में हैं,
ऐसा क्या इत्तेफाक की हर पल में तेरी याद होगी...
- अनुभव